जय माता जी की
आत्म जिज्ञासा
जैसा कि मैंने कई बार बताया है की जीवन मरण के चक्र से मुक्ति पाने हेतु हमें सात्विक शक्तियों का अर्थात ईश्वर के शक्तियों का सहारा लेना पड़ता है उनकी मदद से और कृपा से ही हम बार-बार के इस कष्टकारी चक्र से मुक्ति पा सकते हैं अब मैं आपको बताता हूं की ईश्वर की अनुकंपा ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त की जाती है I
क्या आपने कभी यह सोचा है कि आखिर वह कौन सी चीज है जिसे देखते हुए ईश्वर हम से प्रेम करते हैं और सदैव अपनी कृपा दृष्टि हम पर बनाए रखते हैं??????यदि आप थोड़ा भी ध्यान दें तो इसका जवाब अपने आप आपकी जुबान पर आ जाएगा की वह क्या चीज है जिससे आपको ईश्वर का प्रेम प्राप्त होता है वह है आपके सत्कर्म आपके पुण्य कर्म |
मनुष्य योनि में आने वाला प्रत्येक जीव अपने जीवन में असंख्य कर्म करता है जिसके फलस्वरूप उसके कर्मों का लेखा-जोखा बनाकर उसके आगे का जीवन चक्र निर्धारित किया जाता है यदि कोई मनुष्य अपने जीवन में पाप कर्म नीच कर्म करता है तो उसके आने वाले जीवन काल में उसे उन सभी पापों को स्वयं भी भोगना पड़ेगा जिस प्रकार से उसने अपने जीवन काल में कई जीवो को सताया तथा उन्हें दुख दिया है वै सभी उसके आने वाले जीवन काल में उस व्यक्ति से अपना कर्मों का हिसाब किताब बराबर करेंगे और यदि इसी तरह व्यक्ति के कर्मों का हिसाब किताब चलता रहता है तो वह कभी मुक्त नहीं हो पाता....
मुक्ति पाने हेतु यह जरूरी है कि आप अपने पुराने कर्मों को भोगते हुए भी एक शुद्ध ह्रदय के साथ जनकल्याण मैं सहयोग दें तथा सब के प्रति प्रेम भाव रखें किसी भी जाति धर्म के ऊपर किसी भी प्रकार का मतभेद या मनभेद अपने मस्तिष्क मैं ना आने दें तथा सरलता पूर्वक अपना जीवन चलाते हुए यह हमेशा स्मरण रखें चराचर जगत उसी ऊर्जा से निकला है उसी शक्ति का अंश है जिसके आप हैं इसी कारण कोई भी आपसे छोटा या निम्न नहीं है सब का सम्मान करें पशु पक्षी जीव जंतु पेड़ पौधे प्रकृति हर एक वस्तु जो इस पृथ्वी पर मौजूद है उसे सम्मान की निगाह से देखें तथा अपना मनुष्य धर्म निभाते चले |
लेकिन क्या है यह मनुष्य धर्म???
अपने जीवन के तीनों अध्याय( बचपन, जवानी, बुढ़ापा ) बिना छल कपट के पूर्ण करना|
सबसे उच्च धर्म है दया करना|
सदैव अपने से बड़ों का सम्मान तथा अपने से छोटों के प्रति प्रेमभाव रखना|
अपना प्रत्येक कर्म ईश्वर को समर्पित करना|
अपनी गुजरी पीढ़ियों का उद्धार तथा आने वाली पीढ़ियों का सही मार्गदर्शन करना|
गृहस्ती में रहकर अपने परिवार का भरण पोषण करना व ईश्वर के बनाए इस संसार में अपना पूर्ण योगदान देना|
किसी भी कार्य को करने से पहले अपने माता पिता की अनुमति लेना|
अपनी गुरु आज्ञा को कभी अनसुना नहीं करना|
काम, क्रोध, लोभ को अपने अधीन करना अर्थात उन पर नियंत्रण पाना|
हर परिस्थिति में ईश्वर के प्रति प्रेम रखना तथा उन पर विश्वास रखना |
यह सभी वह प्रमुख धर्म है जो मनुष्य को निभाने चाहिए किंतु दुर्भाग्यवश आज के समय में इन्हें निभाने वाला कोई भी मनुष्य नहीं है कोई ना कोई कहीं ना कहीं अपने धर्म से विमुख हो ही जाता है चाहे वह दया की बात हो माता पिता के प्रति प्रेम की बात हो गृहस्थी निभाने की बात हो बड़ों का आदर करने की बात हो छोटों के प्रति स्नेह रखने की बात हो गुरु की आज्ञा मानने के बाद हो या ईश्वर को हर परिस्थिति में प्रेम करने की बात हो हम सब में कुछ ना कुछ दोष आ ही जाता है और हम अपने कर्मों में अपने धर्म को जोड़ नहीं पाते और वह कर्म जो धर्म के खिलाफ हो वह हमेशा पाप कर्म ही होता है जो आपको वापस जीवन मृत्यु के चक्र में धकेल देता है |
किंतु ईश्वर की माया ही कुछ ऐसी है कि व्यक्ति कहीं न कहीं भटक कर पथभ्रष्ट होकर अपने धर्म से विमुख हो जाता है तो किस तरह इस माया से बचकर अपने धर्म का पालन करते हुए सत्कर्म करें????
किस प्रकार ईश्वर को प्रसन्न करें उनकी कृपा प्राप्त करें????
नित्य पूजा
नित्य पूजा एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा आप ईश्वर को अपने परिवार का एक हिस्सा मान कर उन्हें प्रेम देते उनका सम्मान करते हैं उनकी पूजा आरती करते हैं इसके फलस्वरूप ईश्वर भी आपको अपने परिवार का हिस्सा मान कर सभी रोगों से सभी दुखों से दूर करने लगते हैं आपके ऊपर प्रेम बरसाने लगते हैं....
तो फिर कैसे की जाती है यह नित्य पूजा????
अपने घर में किसी भी देवी देवता जो आपको प्रिय हो उनकी तस्वीर घर के पूजनीय स्थल पर रखें l
उनकी सेवा हेतु रोज वह स्थान जहां ईश्वर को स्थापित किया गया है उसे साफ स्वच्छ रखें तथा स्नान आदि से निवृत होकर उनको भी स्नान आदि कराएं तथा तिलक लगाकर एक शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक जलाएं तथा धूप या अगरबत्ती लगाएं.... इसके पश्चात एक आसन पर बैठकर उन्हें मन से पुकारे तथा प्रेम पूर्वक अपने ध्यान में उनकी छवि याद करें उनके शरीर के अंगों को निहारे तथा उनके चरणों में अपना ध्यान लगाते हुए मन ही मन भाव से उन्हें अपने माता पिता का दर्जा दे तथा सदेव उन से प्रार्थना करें कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी प्रकार के मोह में आकर आप उनसे कभी विमुख ना हो जाए इसके लिए खुद ईश्वर ही आपकी सहायता करें|...
इसके बाद उनके स्तोत्र का पाठ करके उनके प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करें.......
यही प्रक्रिया शाम को भी दोहराए...........
इस पुस्तक में मैं मां दुर्गा के नित्य पूजा किस तरह की जाती है उसका विवरण दे रहा हूं...
मां दुर्गा नित्य पूजा
मां की तस्वीर को स्वच्छ कपड़े से साफ करके रोज कुमकुम का तिलक लगाएं तथा प्रसाद में रोज मिश्री का भोग लगाएं|
घी का दीपक जलाएं तथा धूप अगरबत्ती भी जलाएं|
लाल रंग के वस्त्र पहने लाल रंग का आसन प्रयोग करें |
तीन बार आचमन करें
(a) ओम नारायणाय नमः
(b) ओम केशवाय नमः
(c) ओम माधवाय नमः
इसके बाद चौथी बार हाथ में जल लेकर हाथ धोएं...
इसके बाद भगवान श्री गणेश मां दुर्गा भगवान भोलेनाथ हनुमान जी भैरव जी तथा अपने कुल देवी या देवता का ध्यान करें...
जिस क्रम अनुसार आपने इनका ध्यान किया उसी क्रम के अनुसार इनका पाठ तथा पूजन किया जाता है|
☆-☆-☆ अब मैं आपको केवल मां दुर्गा की पूजा के लिए किए जाने वाले पाठ के बारे में बताऊंगा☆-☆-☆
8. सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते... इस मंत्र का जाप करके माता दुर्गा का ध्यान करें...
9. इसके बाद दुर्गा चालीसा का पाठ करें..
10. इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती की पुस्तक खोलकर सप्तश्लोकी का पाठ करें..... शताष्टकम का पाठ करें..
अर्गला स्तोत्र का पाठ करें तत्पश्चात चंडी कवच का पाठ करें.... तथा तंत्रोक्त देवी सुक्तम का पाठ करें उसके बाद क्षमा प्रार्थना का पाठ करें फिर कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें केवल एक बार रोजाना इसके बाद में मां दुर्गा के 32 नामों का पाठ करें....
11. इसके बाद नवार्ण मंत्र (|| ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ||) की 1...3...5... या 11 माला रोज करें |
12. इसके बाद नवदुर्गा को प्रणाम करें |
☆》 मां दुर्गा की नित्य पूजा में इतने पाठ काफी है इसी से आपके जीवन में आने वाली लगभग हर समस्या का अंत निश्चित तौर पर होता है
...
☆》 यह पूजा आप सवेरे और शाम को दोनों समय कर सकते हैं... एक बात का जरूर ख्याल रखें की शाम को आपके घर में पूजा अवश्य होनी चाहिए |..
इस नित्य पूजा के साथ आप अध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति करने के लिए साधना मार्ग से जुड़ सकते हैं जो अत्यंत लाभकारी है किंतु साधनाएं किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही करें अथवा गुरु बना कर गुरु दीक्षा लेने के बाद अपने गुरु से ही अपने आराध्य की साधना करवाने का अनुरोध करें तथा अपने गुरु के मार्गदर्शन में अपने आराध्य की साधना करें |.....
लोगों का सवाल होता है कि साधना क्या है किताबी तौर पर जो जवाब अभी आप समझ सकते हैं सिर्फ उतना ही जवाब मैं आपको दूंगा
...
संकल्प लेकर के किसी निश्चित समय में निश्चित संख्या के मंत्र उच्चारण को साधना कहा जाता है...
अनुष्ठान क्या होता है???
आप चाहे जितने भी दिनों की साधना करें मान लीजिए साधना का समय अपने 11 दिनों का रखा है तो यह 11 दिनों की साधना का आपका एक अनुष्ठान होगा |
विशेष बात

☆ यह सभी पूजा तथा साधनाएं मिलकर आपके शरीर में आपकी आत्मा तक ईश्वर के साथ एक शक्ति को पहुंचाती है जिससे आपका शरीर ऊर्जावान होता है तथा आपको सही गलत का बोध होता है....
☆ जब आपके शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा का संचार होने लगता है तब आपके शरीर में स्थापित चक्र जागृत होते हैं तथा आप की कुंडलिनी शक्ति जागृत होकर आपको परालौकिक जगत से जोड़ देती है...
जब परम शक्ति से आपका संबंध स्थापित हो जाता है तब वही आपको मोक्ष की तरफ अग्रसर करती है तथा आप इस जीवन मरण के व्यूह से मुक्त होकर अटल ज्योति में समा जाते हैं |
☆ यदि इस विवरण में मुझसे कोई भूल हो गई हो तो कृपा करके आप मुझे क्षमा करें और मैं आशा करता हूं यह पुस्तक आपके जीवन को सही दिशा दिखाने में उपयोगी होगी.... मां भगवती आपका कल्याण करें |
卐जय माता जी की हर हर महादेव 卐
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ReplyDeleteJAI MATA DI hamara bhagaya acha hai ki hum sabko esa marqdarshan mil reha hai.
ReplyDeleteJai mata di har har mahadev
E si amuly gyan dene ke liye apko vandan
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏
ReplyDelete🙏🙏🙏
ReplyDeletePranaam Bhaiji. Har har mahadev and jai mata ji ki. Aap ki kripa mujh per and sabhi per rahey. 🙏🙏🙏
ReplyDeleteAtbhut gyan
ReplyDeleteHanuman ji ki nite pooja ke baare bataye. Jai shri ram ji jai hanuman ji ki aadesh
Thanks bhaiya Jay Mata di
ReplyDeleteहे महात्मा, आप हमे इतनी अच्छी जानकारी देते हो। इसके लिए आपका धन्यवाद।
ReplyDeleteजय माता जी की हर हर महादेव
aapko pranam
ReplyDeleteJaye mata di
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