ब्रह्मचर्य
( Celibacy )
महावीर हनुमान जैसे ब्रह्मचारी इस संसार में ना कभी हुए और ना ही कभी होंगे किंतु हनुमान जी के लिए ब्रह्मचर्य का अर्थ क्या था आइए आज आप सब को समझाता हूं.....
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम
तेज, ओज, बल, बुद्धि, व्यक्तित्व का प्रभाव, स्वास्थ्य ,आत्म बोध तथा स्वरूप , स्वभाव आदि तो ब्रह्मचर्य के ही पुष्प एवं फल मात्र है इन सभी का मूल ही ब्रह्मचर्य है।
ब्रह्मचर्य की शक्ति से ही भगवान शिव कामारि, जगद्गुरु एवं त्रिपुरारी बन पाए हैं। ब्रह्मचर्यय के बिना मनुष्य केे तीनों शरीर अर्थात स्थूल, सूक्ष्म ,एवं कारण शरीर अब्रह्मचर्यय रूपी प्रमेह से ग्रस्त होकर रोगी ही बने रहते हैं।
जिस भी मनुष्य अथवा जन का ब्रह्मचर्य खंडित होता है उसका साधना रूपी तेज रिसता रहता है बहता रहता है नष्ट होता रहता है जिस प्रकार फूटे हुए घड़े में लगातार पानी रिसने के कारण वह कभी भरा हुआ नहीं रह सकता वैसे ही जिन लोगों का ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है उनका साधना रूपी घड़ा भी कभी पूरा नहीं हो पाता नित्या अधूरा एवं अपूर्ण ही रहता है अतः सिद्धि प्राप्त करने के इच्छुक श्रेष्ठ साधक को चाहिए कि वह ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें ।
अब समझाता हूं कि ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ क्या है तथा इसके भावार्थ को समझें तथा तत्पश्चात ब्रह्मचर्य शब्द का जो लोक में प्रचलित रूढ़ार्थ है उसको समझे।
संसार में जो दुराचरण करता है वह दुराचारी कहलाता है जो मिथ्याचरण करता है वह मिथ्या चारी कहलाता है जो भ्रष्ट आचरण करता है वह भ्रष्टाचारी कहलाता है वैसे ही जो ब्रह्माचरण करता है वह ब्रह्मचारी कहलाता है
ब्रह्माचरण में दो शब्द ब्रह्म एवं आचरण आते हैं अर्थात जो व्यक्ति ब्रह्म के जैसा आचरण करें वह ब्रह्मचारी होता है अब समझते हैं कि ब्रह्म का अर्थ क्या है।
जिससे बड़ा कोई ना हो, जिससे सूक्ष्म भी कोई ना हो, जो अजर है, अमर है, इंद्रियों की पहुंच से बाहर है, तथा जो स्वयं ही अपना साक्षी है अर्थात उसके पूर्व पश्चात एवं समकाल में भी कोई नहीं हो वही, जो एकमात्र सत्य है, जो आनंद स्वरूप है, ज्ञान है, अनंत हैैै, तथा सर्व व्याप्त चेतन है वही ब्रह्म है।
सच्चा ब्रह्मचारी कौन है?????
जिसकी दृष्टि ब्रह्म दृष्टि हो चुकी हो, अतः ब्रह्मचारी केवल और केवल वह व्यक्ति है जिसकी दृष्टि में अपने और परााए का तात्विक भेद समाप्त हो गया हो, द्वैत नष्ट हो गया, द्वंद नष्ट हो गया तथा एकमात्र ब्रह्म ही सर्वत्र अनुभव स्वरूप हो गया हो।
इस प्रकार का ब्रह्मचर्य ही पूर्ण ब्रह्मचर्य होता है जिसमें सब कुछ ब्रह्म सिद्ध हो गया हो नर तथा नारी का लिंग आदि भेद पूर्णत समाप्त हो चुका हूं
दार्शनिक स्तर पर किसी में कोई भेद ना हो प्रत्येक भेद महत्वहीन तथा मिथ्या सिद्ध हो चुका हो ऐसा ब्रह्मचर्य ही पूर्ण तथा सच्चा ब्रह्मचर्य कहलाता है ।
यह प्रचंड परिपूर्ण एवं अखंडित ब्रह्मचर्य केवल और केवल अद्वैत के विचारों को आत्मसात कर लेने के उपरांत ही शब्द सकता है अन्य किसी तरह से नहीं दूसरे शब्दों में बिना अद्वैत की सिद्धि के ब्रह्मचर्य सद ही नहीं सकता ।।
किंतु जब तक अद्वैत की पूर्ण सिद्धि नहीं हो जाती एवं विचार जब तक पूर्णता आत्मसात नहीं हो जाते तब तक ब्रह्मचर्य किसी भी रूप से अखंडित नहीं हो सकता।
ब्रह्मचर्य को जिस रूढ अर्थ में संसार यों द्वारा समझा जाता है वह तो प्रसिद्ध है ही उस रूढ अर्थ वाले ब्रह्मचर्य को साधने के लिए कुछ शास्त्रीय साधन है जैसे कि भगवान की भक्ति तथा चित्त वृत्तियों को अष्टांग योग द्वारा निरुद्ध करना ।
केवल लिंगभेद से बचकर आप पूर्ण ब्रह्मचर्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं इसके लिए आपको ब्रह्मा चरण करना पड़ता है आशा करता हूं आपको यह बात समझ आ गई होगी इसी बात के साथ अपने शब्दों को यहीं विराम देता हूं।
मां भगवती आपका कल्याण करें
जय माता जी की हर हर महादेव
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